पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१९१

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उसके पास आता था उसे देखते ही पीला पड़ जाता था। औरङ्गजेब आज्ञा टालने को सह नहीं सकता था। जो उसकी आज्ञा से मुंह फेरता उसको वह कभी क्षमा नहीं करता था। सारे सेनाध्यक्ष और कर्मचारी उसके नाम से थर्राते थे।

५—औरङ्गजेब नाच और गाने बजाने से घृणा करता था। सिंहासन पर बैठतेही उसने उन गवैयों और बेसवावों को निकाल दिया जो उसके बाप के समय के नौकर थे। कुछ ही दिन पीछे लोगों ने एक अर्थी बनाई और उसे लेकर रोते पीटते झरोखों के नीचे से निकले। बादशाह ने सिर उठाकर देखा और पूछा कि यह किसका मुर्दा है। उन्हों ने उत्तर दिया कि यह संगीत विद्या का मुर्दा है। हम लोग इसे गाड़ने लिये जाते हैं। बादशाह ने उत्तर दिया कि इसे ऐसा नीचे गाड़ो कि फिर न निकल सके।

६—सम्भव है कि औरङ्गजेब अपने मनही मन में लज्जित हुआ हो कि मैंने अपने बाप और भाइयों के साथ बुरा बर्ताव किया और अपनी हिन्दूप्रजा का चित दुखाया। इसी कारण उसने अपने राज्यकाल में इतिहास लिखने का निषेध कर दिया था। उसके समय का वृत्तान्त जो कुछ कि हम लिखते हैं ख़फ़ी खां के रचे इतिहास से लिया गया है। यह छिपे छिपे और डरते डरते जो कुछ होता गया लिखता रहा। जब तक औरङ्गजेब जीता था इसने अपना लिखा हुआ किसी को नहीं दिखाया। जान पड़ता है कि औरङ्गजेब को अपनी आयु में कभी सुख न मिला और अन्तिम काल में अपनी निठुराई सोच सोच कर वह बड़ा दुखी रहता था। नब्बे बरस की आयु में औरङ्गजेब अपने बेटे को लिखता है कि मैं अपने राज्य का रक्षक नहीं था अब मेरी मृत्यु निकट है; मैं अपने पापों का फल अपने साथ ले जाऊंगा। कौन जानता है ईश्वर मुझे क्या दंड दे।