१३—इसके थोड़े दिनों पीछे जहांगीर मरगया। शाहजहां सिंहासन पर बैठा। नूरजहां के निमित्त एक अच्छा वेतन नियत कर दिया गया। पीछे नूरजहां तीस बरस तक जीती रही पर राज से इसका कुछ सम्बन्ध न था।
(सन् १६२७ ई॰ से १६५८ ई॰ तक)
१—शाहजहां से तुर्क पठान की अपेक्षा राजपूत अंश बहुत था। उसकी मां राजपूत राजकुमारी थी और उसका बाप भी राजपूत मां का बेटा था। मुग़ल बादशाहों में उससे बढ़कर राजसी ठाटवाला सम्राट दूसरा न हुआ। तीस बरस के राज्य में उसने ऐसे शहर बसाये और महल मक़बरे और मसजिदें बनवाई जिन से बढ़कर दूसरे इस देश में नहीं हैं।
२—सिंहासन पर बैठतेही उसने अपने सब भाइयों और उनकी अनाथ सन्तान को बड़ी निठुराई से मरवा डाला जिससे कोई राजका दावादार न रह जाय।
३—पहिले तो उसने ऐसी निठुराई की पर पीछे अपने राज्य का प्रबंध बहुतही अच्छा किया; और जहांगीर से बहुत बढ़कर निकला। वह न जहांगीर ऐसा आलसी न उतना शराबी था; अपने दादा अकबर की तरह हिन्दू मुसलमान सब को बराबर मानता था। उसकी प्रजा उससे बहुत प्रसन्न थी। राजपूत उसे राजपूत ही मानते थे और इसके बैरियों से लड़ाई में उसका साथ देते थे।