समाचार दिया कि खुसरो दिल्ली भाग गया। वहां उसने कुछ सेना भी इकट्ठी कर ली है और लाहोर पहुंच गया है। जहांगीर उसके पीछे चला। लाहोर पहुंचकर उसने देखा कि क़िला घिरा पड़ा है। खुसरो की सेना की हार हुई और वह भागा। सिन्धु नदी पार जाने का उपाय कर रहा था कि पकड़ा गया और पांवों में बेड़ी पहिने बाप के सामने लाया गया। उसके ७०० साथी बड़ी निठुराई से बध किये गये और वह सोलह बरस तक क़ैद में रहा; इसके पीछे अपने सगे भाई खुर्रम (शाहजहां) के हवाले किया गया और खुर्रम ने उसे मरवा डाला।
३—अकबर की नाईं जहांगीर ने भी कई राजपूत राजकुमारियों के साथ बिवाह किया। उनमें एक से खुर्रम था जो पीछे शाहजहां के नाम से सिंहासन पर बैठा। पर बादशाह होने के छठे साल जहांगीर ने एक ईरानी स्त्री से ब्याह किया। यह नूरजहां थी जो भारतवर्ष की एक प्रसिद्ध मलका हो गई है।
४—नूरजहां का बाप तुर्किस्तान का रहनेवाला था; अपनी जन्मभूमि में दरिद्रता से घबराकर भारत में चला आया था। लाहोर में उसके एक पुराने मित्र से भेंट हुई। उसकी सहायता से दर्बार में एक ऊंचे पद पर नियुक्त हो गया। वह बुद्धिमान मनुष्य था; जल्दी जल्दी बढ़ता गया और अन्त में ख़जाने का हाकिम बना दिया गया। उसकी इकलौती बेटी मेहरुन्निसा बड़ी सुन्दर और बुद्धिमती थी। उसके पिता ने उसकी मंगनी एक नवयुवक ईरानी सर्दार शेर अफ़गन से, जो बङ्गाले का हाकिम था, कर दी थी।
५—अभी ब्याह न होने पाया था कि सलीम की दृष्टि उसपर पड़ी। शाहज़ादा उसके प्रेम में फँस गया और उससे निकाह