अप्रसन्न न होते? उनमें से बहुतेरों ने सलीम को भड़का कर, जैसा पहिले कहा जा चुका है, अकबर का विद्रोही कर दिया।
५—अकबर आप विद्वान न था। एक समय तो ऐसा था कि वह लिख पढ़ भी न सकता था। कारण यह था कि बाल्यावस्था में जिस निर्दयी चचा के यहां वह बन्दी था उसने उसकी शिक्षा पर ध्यान ही नहीं दिया। हां अकबर की यह चाह थी कि किसी पढ़े लिखे को पास बैठा कर उससे पुस्तकें पढ़वाता जाता और आप सुनता था। उसने एक बड़ा पुस्तकालय बनवाया था जिसमें लगभग पांच हजार पुस्तकें थीं। उसको चित्रकारी से बड़ा प्रेम था। बहुत से चित्र उसके यहां मौजूद थे। कविता और गाना सुन कर भी बहुत प्रसन्न होता था।
६—अकबर की राजसभा में उस समय के सुप्रसिद्ध विद्वानों का जमघट रहता था और उन्हीं की सहायता से वह हिन्दू और मुसलमान दोनों को मिलाये रहता था। हम पहिले ही कह चुके हैं कि राजा भगवान दास और जयपूर नरेश मानसिंह दोनों अकबर की सेना के सेनापति थे। मानसिंह पहिले बङ्गाले का सूबेदार हुआ, फिर बिहार का, फिर दखिन का, और अन्त में काबुल का। उसने उड़ीसा को जीत कर अकबर के राज में मिला लिया। अकबर का अपने सैनिक अफ़सरों में सब से अधिक विश्वास मानसिंह ही पर था। मुसलमान अफ़सरों में अकबर के