जिस भांति प्राचीन आर्यलोग उनका पूजन करते थे तुम भी कर सकते हो। पर अकबर ने कभी किसी पर दबाव नहीं डाला कि वह इस नये मत को माने। कुछ लोगों ने केवल यह बिचार कर कि अकबर प्रसन्न होगा इस दीन को स्वीकार कर लिया था पर उसकी मृत्यु के पीछे कभी ऐसा नहीं सुना गया। अकबर के शान्त स्वभाव होने का एक कारण यह भी था कि उसके महल में बहुत स्त्रियां ऐसी थीं जो मुसलमान न थीं। हर हिन्दू स्त्री के लिये एक अलग मन्दिर था और हर मन्दिर का अलग पुजारी था। उसको अधिकार था कि जिस भांति चाहे अपने देवता की पूजा करे। आप भी कभी कभी माथे पर तिलक लगा लेता और गले में जनेऊ धारण कर लेता था।
४—अन्तिम अवस्था में अकबर कुछ बुद्धिहीन सा हो गया था। और अपने आप को और मनुष्यों से बढ़ कर समझता था। एक मुल्ला ने उसकी बुराई में एक शेर लिखा था जिसका अर्थ यह था कि इस बरस सम्राट पैग़म्बर होने का दावा करता है दूसरे बरस अपने को ईश्वर ही कहेगा। अब जो सिक्का उसने जारी किया उसपर अल्लाह अकबर के शब्द लिखे थे। उनका अर्थ यह हो सक्ता है कि ईश्वर बड़ा है और यह भी हो सकता है कि अकबर ईश्वर है। फैज़ी पहिले ही अपनी कविता में कह चुका था कि "तुमने अकबर को देख लिया तो स्वयं ईश्वर को देख लिया"। फिर कट्टर मुसलमान, जैसे विद्वान और मुल्ले, क्यों कर अकबर से