पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१७०

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उसने कभी कोई देश नहीं उजाड़ा और न कहीं प्रजा ही को लूटा मारा। छोटी अवस्था में सलीम बड़ा निर्दयी था। एक बार अकबर ने सुना कि सलीम ने जीते जी किसी की खाल खिंचवा ली। अकबर कहने लगा, आश्चर्य्य है कि जो मनुष्य मरी बकरी की खाल खीचते देखकर अत्यन्त दुखी होता है उसका पुत्र क्योंकर किसी जीते मनुष्य पर ऐसा अत्याचार करता है?

३—अकबर की शिक्षा मुसलमानी रीति के अनुसार हुई थी परन्तु हिन्दुओं के लिये बड़ा कोमल और दयालु था। यह कहा करता था कि हर मत में भलाई और सत्य पाया जाता है। उसका बचन था कि जो ईश्वर से प्रेम रखता है वह हर जगह उसका दर्शन कर सकता है, मुसलमान मसजिद में हिन्दू अपने मन्दिर में और ईसाई गिरजे में। अकबर के राज में हर मनुष्य को अधिकार था कि जो मत पसन्द करे उस पर चले। उसके सिक्के पर फ़ारसी में एक शेर लिखा था जिसका अर्थ यह है कि, "सच बोलना ईश्वर को प्रसन्न करने का उपाय है। मैंने किसी को सचाई की राह में भटकते नहीं देखा।" उसकी अभिलाषा थी कि अपनी राजसभा में हर मत के विद्वानों को बुलाये। बहुधा गुरुवार की सन्ध्या को वह उन विद्वानों को आज्ञा देता कि अपने धर्म के पुष्ट करने के लिये व्याख्यान दें। सुन्नी, शिया, ब्राह्मण, पारसी, ईसाई और यहूदी बारी बारी अपने अपने धर्म का मण्डन करते थे। इन सब शास्त्रार्थों के पीछे अकबर ने एक नया मत निकाला; इसका नाम दीन इलाही (ईश्वरीय धर्म) रक्खा। जिस धर्म की जो बात पसन्द आई वही अकबर ने अपने मत में रखली। इस धर्म की शिक्षा यह थी कि ईश्वर एक है और अकबर उसका खलीफ़ा या दूत है। अकबर कहता था कि कोई मनुष्य ईश्वर का कर्तव्य देखना चाहे तो सूर्य, अग्नि और तारे मौजूद हैं।