काला हो गया है। भारतवर्ष के और देशों में इतने काले लोग नहीं रहते। दक्षिण हिन्दुस्थान में आज ५ करोड़ ७० लाख द्रविड़ बसते हैं और १४ भिन्न भिन्न बोलियां बोलते हैं जिनमें टामिल, तिलगू, मलयालम और कनाड़ी प्रधान हैं।
७—हिन्दुस्थान के किसी किसी भाग में कुछ पुरानी द्रविड़ जातियां अभी तक ऐसी हैं जिन्हें हिन्दू कहना कठिन है। यह जान पड़ता है कि और द्रविड़ों की नाईं इन्हें सभ्यता प्राप्त न हुई। ऐसे लोग दक्षिण के पहाड़ी देशों में बसते हैं और गोंड और खांद इनकी प्रसिद्ध जातियां हैं।
(४) जातियां जो बाहर से आकर हिन्दुस्थान में बस गईं।
१—मध्य एशिया हिमालय पहाड़ के उत्तर में है। वहां बड़ी ठंडक पड़ती है क्योंकि बड़े बड़े पहाड़ सदा बरफ़ से ढके रहते हैं। धरती कड़ी और पथरीली है। पानी कम बरसता है। नदियां भी थोड़ी हैं। जो जातियां इन पहाड़ी देशों में बसी हैं वह अपने ढोरों के लिये घास चारे की खोज में इधर उधर फिरा करती हैं। अनाज भी वहां पैदा नहीं होता, इससे उनका निर्वाह कठिनाई से होता है।
२—हिमालय के दक्षिण एक हज़ार मील तक ऐसे मैदान हैं जो गरम हैं, जिन में सूर्य का प्रकाश बहुत रहता है, बड़ी बड़ी नदियां बहती हैं, धरती उपजाऊ है, खाने पीने का सुभीता है और सब तरह का अनाज पैदा होता है। बहुत ही प्राचीन समय से उत्तर के ठंढे देशों के रहनेवाले पहाड़ों के दर्रों की राह दक्षिण के हरे भरे देशों में आते रहे और जब उन्हों ने देखा कि उनके उत्तर के देश की अपेक्षा यहां सब तरह से सुख चैन है तो यहीं के मदानों में बस गये।