सब से बलिष्ठ गढ़ था। इसमें जाने की एक ही राह है। यह राह पहाड़ को काट कर बनाई गई है इसमें एक के ऊपर एक चार फाटक हैं। पहले पहल १३०३ ई॰ में अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसको पराजित किया था, और फिर १५३३ ई॰ में बहादुर शाह गुजरात के सुलतान ने। अकबर कई महीने इसको घेरे पड़ा रहा; कोई उपाय विजय करने का न दिखाई दिया। अन्त में एक रात अकबर की दृष्टि गढ़ की दीवार पर पड़ी तो उसने देखा कि जयमल उसपर खड़ा हुआ अपने सैनिकों से एक सेंध बन्द करा रहा है जो उसमें हो गई थी।
अकबर ने तत्काल अपनी सब से अच्छी बन्दूक मंगाई और एक ऐसा निशाना लगाया कि गोली जयमल के माथे पर बैठी जयमल गिरतेही परलोक सिधारा। राजपूत निराश हो गये। उन्हों ने प्राचीन नीति के अनुसार जौहर करके स्त्रियों और बालकों को अपने हाथ से मार दिया और फिर केसरिया बस्त्र धारण कर हाथों में तलवार ले गढ़ से निकल पड़े और ऐसे कट कट कर मरे कि आठ हज़ार में एक भी न बचा।
९—उदय सिंह ने अकबर की आधीनता स्वीकार न की। उसके पुत्र प्रताप ने भी जीते जी उसके आगे सिर न नवाया। राना प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक चित्तौड़ न ले लूंगा चांदी सोने के बरतनों में भोजन न करूंगा न फूस के बिछौने के सिवा किसी और बिछौने पर सोऊंगा, न दाढ़ी को बल देकर चढ़ाऊंगा। यह लड़ता लड़ता मर गया पर चित्तौर न ले सका।