सिपाहियों ने डोलों से निकल कर किले के फाटक खोल दिये और शेर खां की सेना भीतर घुस आई और क़िले पर अपना अधिकार जमा लिया।
५—बादशाह बनने के पीछे शेरशाह ने बड़ी बुद्धिमानी से राज किया। इसने देखा कि अगले बादशाह अपनी बड़ाई और सजधज के अभिमान में छोटी छोटी बातों पर ध्यान ही नहीं देते थे। यह लोग अपने वज़ीरों और सलाहकारों पर इतना भरोसा रखते थे कि आंख मूंद कर राज के प्रायः कुल काम काज उन्हीं के ऊपर छोड़ देते थे। पहिले तो वज़ीर और सलाहकार मेहनती और बहादुर होते थे। फिर यह भी सुख चैन में पड़ जाते थे और खाने पीने सोने ही को अपना कर्तव्य जानते थे। राजकाज सब नौकरों के हाथ में छोड़ देते थे।
६—शेरशाह ऐसा नहीं करता था। यह हर एक बात को आप देखता भालता था। एक बड़े भारी राज का मालिक होने पर भी वह कभी सुस्त नहीं बैठता था और राज के कारबार में ऐसा लगा रहता था जैसे कोई दरिद्री मज़दूर अपनी जीविका की चिन्ता में अपने हाथ पांव से अड़ा रहता है। और जैसे आप काम करता था वैसे ही अपने मातहतों से भी काम लेता था। इस से पहिले किसी अफ़ग़ान बादशाह ने इस योग्यता के साथ राज नहीं किया। यह जानता था कि प्रजा की रक्षा और उनका पालन करना बादशाह का सब से बड़ा धर्म है। इसने हिन्दुओं को नहीं सताया और बहुत से हिन्दुओं को ऊंचे पद पर नियत करके राजकर्मचारियों में मिला लिया। इन में से एक टोडरमल थे जो माल के मुहकमे के मंत्री थे।
७—शेरशाह सिपाहियों की तनख़ाह बहुधा अपने आगे