पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१५४

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इस कारण काबुल के सर होने पर हुमायूं ने आज्ञा दी कि कामरा की आंखैं निकाल ली जायं। अन्धा कामरां हुमायूं के सामने दर्बार में लाया गया तो उसने सारे दर्बारियों के आगे यह कहा कि मेरे भाई ने कुछ अत्याचार नहीं किया और मैं सचमुच इसी दण्ड के योग्य था। हन्दाल लड़ाई में मारा गया। हुमायूं ने उसको भी अपने हाथ से नहीं मारा। अस्करी मिर्ज़ा मक्के की हज को चला पर रास्ते ही में मौत ने उसे आ घेरा।

१९—अब शेर खां भी मर चुका था। उसके पीछे उसके वंश के तीन बादशाह सिंहासन पर बैठे उनमें से अन्तिम बादशाह राज करने के योग्य न था। हुमायूं एक सेना लेकर दिल्ली पहुंचा। इस बार इसके साथ बहादुर सिपाही थे। पन्द्रह बरसके बिछुड़ने के पीछे अब फिर इसने दिल्ली और आगरा ले लिया। पर बहुत समय तक राज करना उसके भाग्य में न था। एक दिन तीसरे पहर ज़ीने से चढ़ कर महल की छत पर जा रहा था कि पास की एक मसजिद से मुअज्जिन की बांग सुन पड़ी। हुमायं जीने की ही एक सीढ़ी पर नमाज़ पढ़ने ठहर गया। पर संगमरमर की सीढ़ी पर से उसको लाठी फिसली और यह लुढ़कता ज़ीने के नीचे जा पड़ा और इतनी चोट आई कि मर गया। इस समय उसकी आयु पचास बरस की थी।

२०—हुमायूं बहादुर आदमी था। उसने बीरता के बहुत से काम किये पर बाप के समान न फुर्तीला था, न चालाक, और न उसकी भांति अपनी प्रतिज्ञा का दृढ़ था; जवानी आराम और चैन में काटी और बड़ी उम्र में अफ़ीम खाने लगा था जिसके कारण आलसी और बेसमझ हो गया था; भाइयों को प्यार करता था और उनके साथ अच्छा बर्ताव करता था। उनपर इतना दयालु न होता तो कदाचित हिन्दुस्थान की बादशाहत भी