दिल्ली के तख़्त पर हन्दाल।
लिये दर्रे को बंद किये बैठा था। शेरखां जानता था कि दिल्ली से हुमायूं की सहायता को कोई सेना नहीं आ सकती और उसकी निज की सेना दिन दिन निर्बल होती जाती है। वह मैदान में