गुजरात और मालवे में लड़ता था और शेरखां पूर्व में ज़ोर पकड़ता जाता था। उसने एक एक करके बिहार के सब क़िले ले लिये थे और पांच बरस के लगातार परिश्रम के पीछे अपने आप को बिहार और बङ्गाले का मालिक बना लिया था।
७—अब तक हुमायूं उसकी ओर से निश्चिन्त था। गुजरात से आगरे जाने के एक बरस तक वह आराम और चैन में पड़ा रहा और उसके हराने का कोई उपाय न किया। गुजरात का हाल यह हुआ कि हुमायूं के हटते ही वहां के अफ़गानों ने फिर सिर उठाया और अस्करी को जो उनका सामना न कर सकता था देश से निकाल दिया। मालवा भी इसी भांति शीघ्रही हाथ से निकल गया। अब हुमायूं को यह चिन्ता हुई कि जो कुछ देश हाथ से निकले जा रहे हैं उनको फिर ले लेना चाहिए। बाबर के समय के बहादुर सिपाही कुछ तो लड़ाई भिड़ाई में मर खप चुके थे और कुछ अपनी आयु पूरी करके इस संसार से चल बसे थे। हुमायूं ने अपने भाई कामरां को जो काबुल और पंजाब का हाकिम था लिखा कि कुछ सेना भेजो किन्तु कामरां ने उत्तर में लिख दिया कि मैं कुछ नहीं कर सकता। इस कारण हुमायूं की सेना में बड़ी गड़बड़ी थी और उसमें बहुत से अनाड़ी जवान भरे थे।
८—अब हन्दाल और अस्करी को संग लेकर हुमायूं पूर्व की ओर चला; पहिले बनारस के निकट चुनार गढ़ पर धावा मारा परन्तु उस गढ़ के बिजय करने में छः महीने लग गये। शेरखां उस समय बङ्गाले में था। इतना अवकाश मिलने पर वह अपनी सेना और धन लेकर बङ्गाले के रोहतासगढ़ के मज़बूत पहाड़ी किले में जा बैठा जहां उसे किसी प्रकार का भय न था। शेरखां चाहता था कि किसी भांति हुमायूं मेरे पीछे पीछे दूर तक बङ्गाले में चला आये और फिर मैं उसके पीछे एक सेना डालदूं कि उसे लौट जाने