२—सिंहासन पर बैठने के समय हुमायूं की आयु तेईस बरस की थी। इसके तीन भाई थे, कामरां, हन्दाल और अस्करी। राज के प्रारम्भ ही में इसने अपने राज्य का एक एक भाग उनको दे दिया। अफ़गानिस्तान और पंजाब, कामरां के हिस्से में आया। हुमायूं ने तो इसके साथ बड़ी दयालुता की पर अपने लिये कांटे बो दिये क्योंकि यह वह बीर देश थे जहां से बाबर अपनी सेना के सिपाही और अफ़सर भरती किया करता था।
भाई हुमायूं की सहायता तो क्या करते उलटे उसके साथ लड़ाई भिड़ाई करने लगे। कारण यह कि हर एक बादशाह बनना चाहता था। उन्हों ने हुमायूं को जीते जी कभी चैन नहीं लेने दिया।
३—बाबर को इतना अवकाश न मिला था कि अपने राज को दृढ़ करे। जब अफ़गान सर्दारों ने सुना कि बाबर मरगया तो उन्हों ने हुमायूं से लड़ाई करने के सामान कर दिये। हुमायूं को पहिले गुजरात के सुलतान बहादुर शाह से लड़ना पड़ा; उसने बहादुर शाह को हरा कर खम्भात के निकट समुद्रतट तक पीछा किया; जहां से वह एक नाव में सवार होकर दक्षिण की दिशा में बन्दरदेव को चला। यहां उस समय पुर्तगी लोग बसे हुए थे। बहादुर शाह ने उनके यहां शरण ली परन्तु थोड़े ही दिनों पीछे पुर्तगियों ने उसे मारडाला।
४—इसके पीछे हुमायूं ने गुजरात में चम्पानेर के पहाड़ी कोट