छब्बीस बरस काबुल में और पांच बरस हिन्दुस्थान में। इसकी लाश काबुल पहुंचाई गई और एक सुन्दर बाग़ में एक टीले के कोने पर, जिसे बहुत दिन पहिले बाबरने इस काम के लिये आपही चुना था, गाड़ी गई। काबुल के लोग अब तक उसकी क़ब्र पर दर्शन को जाते हैं। इसने अपना जीवनचरित्र आप लिखा था जो अब तक मिलता है। तुर्की और फ़ारसी में कबिता करता था। गानेका इसको बड़ा शौक़ था। अक्षर बड़े सुन्दर लिखता था। हुमायूं को पत्र लिखते हुए देख कर कहने लगा कि तुम्हारा लिखना अच्छा नहीं है और अच्छी तरह पढ़ा नहीं जाता। बाबर को फल फूल बहुत भाते थे। इसी कारण उसने दिल्ली और आगरे में कई सुन्दर बाग़ लगाये। अपने देशके बाग़ इसे कुछ ऐसे सुहावने लगते थे कि सोते में भी उनका सपना देखा करता था।
(१५३० ई॰ से १५५६ ई॰ तक)
१—मरने से कुछ दिन पहिले बाबर ने अपने सब से बड़े बेटे हुमायूं को बुलाया और कहा कि बेटा, जो परमेश्वर तुम्हें मेरा सिंहासन दे तो अपने भाइयों पर दयालु रहना। हुमायूं ने भी अन्तिम काल तक अपने बाप की आज्ञा का पालन किया और क्योंकर न करता, जब यह स्वयं भी अपने भाइयों को प्यार करता था और उनको किसी तरह का दुःख देना नहीं चाहता था। बाप भी उसपर भरोसा करता और जान देता था। बाबर कहा करता था कि संसार में हुमायूं ऐसा सच्चा और विश्वासपात्र दूसरा न होगा।