था। यह लोग अपने पितरों की पूजा करते थे। जो जातियां पीछे से भारत में आईं उनमें कोई कोई कोल कुल ऐसे मिलजुल गये कि अब उनका अलग करना कठिन है। पर अब भी इनके दस बारह कुल ऐसे हैं जो हिन्दुओं से नहीं मिले और हज़ारों बरस से अलग अलग चले आते हैं। ऐसे कोल गिनती में ३०००० हैं और पूर्वीय बंगाला, चुटिया नागपुर, उड़ीसा और मध्य देश के पहाड़ी इलाकों में बसे हैं। इनकी बड़ी उपजातियां भील और सन्ताल के नाम से प्रसिद्ध हैं।
(३) भारतवर्ष की पुरानी जातियां—द्रविड़।
१—द्रविड़ों के पुरखों का ब्यौरा हम उतना ही कम जानते हैं जितना कि कोलों के पुरखों का। सम्भव है कि द्रविड़ धात के समयवालों की सन्तान हों और यह भी हो सकता है कि इनके पुरखें भी वही हों जो कोलों के थे। कुछ अचरज नहीं जो बरसों तक भारत के उपजाऊ और हरे भरे भागों में रहकर कुछ लोग अपने पहाड़ी भाइयों की अपेक्षा अधिक बली और सभ्य हो गये हों और द्रविड़ उन्हीं के वंश में हों। कोई कोई विद्वान यह मानते हैं कि द्रविड़ पश्चिम-उत्तर देशों से भारतवर्ष में आये; बहुत दिनों तक उत्तर भारत में बसे रहे और कोलों से लड़ते भिड़ते दक्षिण में पहुंच गये।
२—बहुतों का यह विचार है कि द्रविड़ दक्षिण से आये। दक्षिण कहां से? इस विषय में भी दो मत हो सकते हैं। एक यह कि यह लोग उस महादेश से आये हों जो भारतवर्ष के दक्षिण हिन्दसागर में बहुत दूर तक फैला हुआ था और अब बैठते बैठते समुद्र में डूब गया है; दूसरा यह कि उन टापुओं से आये हों जो एशिया के दक्षिण आस्ट्रेलिया तक फले हैं। पुराने समय में यह