५—बाबर इस समय ४० बरस का हो चुका था। कुल १३००० सिपाही उसके साथ थे पर उन में से एक एक सौ सौ लड़ाइयां लड़ चुका था और अपने स्वामी के लिये लड़ने मरने को तैयार था। बाबर ऐसे बीर और उसके लिये प्राणसमर्पण करनेवाले सिपाहियों को लेकर पंजाब में घुसा और सीधा दिल्ली की ओर चला गया।
६—पठान बादशाह इब्राहीम लोधी एक लाख पल्टन लेकर उसका सामना करने को बढ़ा पर उसके अफ़ग़ान सिपाही भारतवर्ष के गरम देश में रहकर अपने बाप दादों का बल और साहस खो बैठे थे। आर्यों के भारतवर्ष में आने के दिन से जब कभी उत्तरवालों का सामना पड़ा है सदा दक्षिणवालों को पीछे ही हटना पड़ा है। तुर्क ताज़ा विलायत के आये थे और उनका तन तेज बढ़ा चढ़ा था। वह आग बवण्डल की नाईं भारतवर्ष के पठानों पर टूट पड़े। बाबर अपने झिलमटोपवाले सवारों को लेकर पठानों के टिड्डीदल पल्टन में घुस गया और मुड़कर पिछाड़ी से उनका बध करने लगा। इब्राहीम की पांतियां टूट गई और उसकी पल्टन में भागड़ पड़ गई। इब्राहीम और उसके २०००० सवार खेत रहे। यह पानीपत की पहिली लड़ाई कही जाती है और १५२६ ई॰ में हुई थी।
७—इस लड़ाई से दिल्ली का सिंहासन बाबर को मिलगया। राजपूताने के राजाओं को छोड़ इस समय हिन्दुस्थान में मुसलमानों की पांच बादशाहतें थी। पहिले बाबर ने उन देशों के लेने का उद्योग किया जो सय्यद और लोधी वंश के बादशाहों के हाथ से निकल गये थे। आप दिल्ली में रहा और अपने बेटे हुमायूं को एक बड़ी पल्टन देकर पूर्व की ओर भेजा; अपने और विश्वास पात्र सेनापतियों को थोड़ी थोड़ी सेना देकर इधर उधर भेज दिया।