नित किसी न किसी के साथ झगड़ा बखेड़ा होता रहा। आज जीता तो कल हारा और भाग कर जान छिपाता फिरा। पर इसके तुरक सिपाही सदा इसके साथ रहे। कभी कभी सारे दिन काठी उतार कर बैठना न मिलता और रात को कभी धरती का बिछौना और आकाश का चँदवा छोड़ और कोई सुख से सोने की सामग्री न जुड़ी।
३—अंत को बाबर ने दक्षिण की ओर बढ़ना निश्चय किया। तुर्किस्तान में बाबर ऐसे सरदार बहुत थे; वहां राज्यस्थापन करना सुगम न देख पड़ा। लड़ते भिड़ते कई बरस बीत गये, शहर पर शहर जीते और खो दिये। जब देखो वही जंजाल दिखाई दिया। इसके सजातीय जो इसी की नाईं बेघरबार के थे इसके साथ आगे बढ़ने को राज़ी हो गये और पहाड़ के दरों में होकर अफ़ग़ानिस्तान में पैठे।
४—अफ़ग़ान बड़े बीर और लड़ाके थे पर तुर्की सिपाही जो उत्तर से आये इनसे बढ़कर बलवान और बीर थे। बाबर ने काबुल और ग़ज़नी अपने बस में कर लिये। कई बरस यहां राज किया। पठानों का बल देखने चार बार पंजाब पर चढ़ा और जब आया पठानों के राज का कुछ न कुछ भाग छीन कर अपने किसी सरदार को उसका हाकिम बनाकर छोड़ गया। इसके पीछे जब उसे इस बात का भरोसा हो गया तो उसने अपने सरदारों से पूछा, कहो क्या कहते हो। सब ने एक मत होकर कहा कि, उद्योग करना चाहिये आगे भाग्य में जो कुछ हो।
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