पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१३०

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पहिले दो राजाओं के मन्त्री प्रसिद्ध ब्राह्मण माधवाचार्य थे। दखिन में हिन्दू देवताओं की आराधना का फिर से प्रचार होना इन्हीं के परिश्रम का फल समझना चाहिये।

४—पहिले तो बहमनी सुलतान और विजयनगर के राजा एक दूसरे के मित्र और शुभचिन्तक थे। हिन्दू सैनिक विशेष करके मरहठे बहमनी सेना में भरती होकर लड़ते थे। मुसलमान सिपाही विजयनगर की सेना में भरती होते थे पर जब दोनों रियासतें ज़ोर पकड़ गईं और दिल्ली के बादशाह का डर जाता रहा तो आपुस में झगड़े होने लगे और बड़ी बड़ी लड़ाइयां हुईं।

५—बिजयनगर में १५० बरस बीतने पर बुक्का वंश का अन्त हुआ और एक दूसरा वंश गद्दी पर बैठा। इस परिवार के पहिले राजा का नाम नृसिंह था और इसीके नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। इस वंश के कृष्ण राजा और बहमनी सुलतान में घोर युद्ध हुआ। एक समय सुलतान के यहां नाच रङ्ग का जलसा था, सुलतान शराब के नशे में चूर था। गवैयों के गाने बजाने से बहुत प्रसन्न हुआ और तरङ्ग में आकर कृष्ण राजा के कोषाध्यक्ष को गवैयों को इनाम देने का पत्र दिया। इसका अभिप्राय यह था कि कृष्ण राजा मेरे आधीन है और अवश्य मेरी आज्ञा का पालन करेगा। कृष्ण राजा को यह पत्र पढ़ कर बड़ा क्रोध आया। वह सेना लेकर तुङ्गभद्रा के पार गया और एक बहमनी क़िला जीत कर उसके कुल मनुष्य मार डाले। उधर सुलतान को इसका समाचार मिला। उसने प्रतिज्ञा की कि जबतक एक लाख हिन्दू न मार डालूंगा अपनी तलवार म्यान में न करूंगा। यह भी सेना लेकर नदी के पार गया और मर्द औरत बच्चा जो कोई उसके सामने पड़ा तलवार से साफ करके उसने एक लाख की सौगन्ध पूरी को। अब कृष्ण राजा के ब्राह्मण मन्त्री ने राजा को