स्वतन्त्र बादशाह बन गया। हसन गंगू की बादशाही बहमनी बादशाही के नाम प्रसिद्ध है। यह सन् १५२६ ई॰ तक १६० बरस रही। वह सारा देश जो अब हैदराबाद के नाम से प्रसिद्ध है इसी का भाग था। जिस समय लोधी, तुग़लक, सैयद दिल्ली के बादशाह थे बहमनी कुल के बादशाह गुलबर्गे में राज करते थे।
२—हसन एक दरिद्र अफ़ग़ान था जो तीस बरस तक गंगा नामी एक ब्राह्मण के खेतों में काम करता था। एक दिन हसन को खेतों में कुछ गड़ा हुआ धन मिला। यह उसने अपने मालिक को दे दिया। ब्राह्मण उसकी इमान्दारी से इतना प्रसन्न हुआ कि दिल्ली के बादशाह की सरकार में जहां इसकी बहुत कुछ प्रतिष्ठा थी, उसने कह सुनकर हसन को सौ सवारों का सर्दार बनवा दिया। जिस समय मुहम्मद तुग़लक देवगिरि अर्थात दौलताबाद को अपनी राजधानी बनाने के बिचार में था, हसन अपने सौ तिलङ्गों को संग लिये दखिन पहुंचा और दूसरे अफ़गानी सरदारों की भांति एक छोटे से इलाके का हाकिम बनकर वहीं बस गया। जब यह बादशाह हुआ इसने अपने पुराने स्वामी गंगा मिश्र को मन्त्री के पद पर रक्खा और आप सुलतान हसन गंगू बहमनी की पदवी धारण की। बहमन अथवा बहमनी ब्राह्मण शब्द का अपभ्रंश है। उसके उत्तराधिकारियों ने भी ब्राह्मणों को अपना मन्त्री बनाया और अपनी हिन्दू प्रजा के साथ भी अच्छा बर्ताव किया।
३—इसी समय के लगभग जब बहमनी राज का जन्म हुआ तो तुंगभद्रा नदी के तट पर विजयनगर का एक हिन्दू राज स्थापित हुआ। इस राज की नीव डालनेवाले हरिहर और बुक्काराय नामी दो भाई थे जिन्हों ने मलिक काफ़ूर के आक्रमण के समय वारङ्गल से भाग कर यहां शरण ली थी। उस समय विजयनगर का राज्य सब हिन्दू राज्यों से ज़बर्दस्त था। सन् १३३६ ई॰ में