(२) लोधी वंश।
(सन् १४५० ई॰ से सन् १५२६ ई॰ तक)
१—बहलोल खां लोधी ने दिल्ली के बादशाह होने पर पंजाब के सूबे को भी दिल्ली में मिला लिया। यह सैयदों की अपेक्षा बड़ा शक्तिमान बादशाह था। इसने २६ बरस की लड़ाई के पीछे जौनपुर की बादशाहत को जो पूर्व में अवध और इलाहाबाद के सूबों से घिरी थी अपने अधिकार में कर लिया। इसके शासन में पंजाब से लेकर बिहार तक सारा देश था। मुसलमान ऐतिहासिक लिखते हैं कि इसने बहुत अच्छी बादशाही की। इसको ऊपरी दिखाव की इच्छा न थी। यह कहा करता था कि ऊपरी धूम धाम से कोई लाभ नहीं है। अच्छा और ठीक कर लेना, देश का अच्छा प्रबन्ध करना ही धूम धाम और बड़ाई है। इसने सन् १४५० ई॰ से सन् १४८८ ई॰ तक अड़तीस बरस राज किया। बहलोल खां के मरने के पीछे उसका बेटा सिकन्दर लोधी बाप की राजगद्दी का स्वामी हुआ।
२—सिकन्दर लोधीने बाप के राज को और भी बढ़ाया और बिहार के प्रान्तों को जो जौनपुर से दूर बसे थे जीत कर अपने राज में मिला लिया। मुसलमान प्रजा के साथ उसका जियादः अच्छा बर्ताव था। उसने दिल्ली को छोड़ कर आगरे को राजधानी बनाया और सन् १४८८ ई॰ से सन् १५१७ ई॰ तक २९ बरस राज करके मर गया।
३—इस वंश का तीसरा और अन्तिम बादशाह इब्राहीम लोधी था। उसने कुल नौ बरस राज किया। इसका प्रबन्ध अच्छा न था। उसने अपने एक भाई को जो जौनपुर का सूबेदार था मरवा डाला; और दूसरे को बन्दी कर दिया। पुरषों के जीते हुए