पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/११८

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बोली जानते थे न उन पर दया करते थे। अपने देश के बाग़ियों को वह दबा नहीं सकता था; फिर भी एक लाख सिपाही उसने चीन को भेज दिये कि जाओ चीन को जीत लो। यह सेना योहीं नष्ट हुई। बहुत सी तो हिमालय पर्वत में ठिठुर कर मर गई, और रही सही जो लौट कर आई उसे बादशाह ने मरवाडाला।

६—सूबेदारों और ऊंचे पद के लोगों ने जब यह कुप्रबंध देखा तो विद्रोही होकर स्वाधीन बन बैठे। बंगाले और गुजरात में पठानों ने अपना राज स्वतंत्र बना लिया। तिलंगाने और करनाटक के हिन्दुराजा जो अलाउद्दीन खिलजी के समय में आधीन किये गये थे अब फिर स्वाधीन बन गये। सन १३३६ ई॰ में एक हिन्दू राजा हरिहर ने तुंग नदी पर बिजयनगर में अपना राज्य स्थापित किया। सन् १३४७ ई॰ में एक अफगान सरदार ने जिसका नाम हसन था दखिन में बादशाही की नीव डाली।

७—महम्मद तुग़लक के पीछे उसका भतीजा फीरोज़ तुग़लक गद्दी पर बैठा। यह पठान बादशाहों में सब से अच्छा था। इस ने ४० बरस तक राज किया, और देश की भलाई और प्रजा के सुख के लिये बहुत से उपाय किये; सड़कैं बनवाईं, नहरैं निकालीं, यात्रियों के लिये सरायें बनवाईं और फ़ारसी अरबी के मदरसे खुलवाये। इसने और पठान बादशाहों की अपेक्षा प्रजा के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया। परन्तु धर्म के विषय में यह भी बड़ा कट्टर था; जो हिन्दू अपना धर्म नहीं छोड़ते थे उन पर बहुधा बड़ी निठुराई करता था; हिन्दुओं के मंदिर गिराकर उनके इंट मसाले से मसजिदें बनाना अपना मुख्यधर्म समझता था। इसने अपने जीवनचरित में जो उसने अपने हाथों लिखा था आपही इन सब बातों को स्वीकार किया है।

८—फ़ीरोज़ तुग़लक के पीछे चार बादशाह हुए जिन्हों ने कुछ