पीछे उसका पुत्र जूनाखां गद्दी पर बैठा जो महम्मद तुग़लक के नाम से प्रसिद्ध है। इस ने २७ बरस राज किया। इसका समय देश के लिये राजरोग था। प्रजा उसको हत्यारा सुलतान कहा करती थी। इसने ऐसी ऐसी बिचित्र बातें और दुराचार किये कि बहुत से हिन्दू इसे पागल कहा करते थे। इसके समय में जब मुग़लोंने बड़ी सेना लेकर चढ़ाई की तो यह उन से लड़ा तो नहीं पर अपने ख़जाने का सारा धन देकर उनको लौटा दिया।
३—ख़जाना ख़ाली हो गया; तो इसने तांबे का सिक्का चलाया और प्रजा को आज्ञा दी कि चांदी के रुपये की जगह तांबे का सिक्का ले। प्रजा ने यह न माना। इसने कर बढ़ाना आरम्भ किया; और बढ़ाते बढ़ाते पहिले से दूना कर दिया। प्रजा से जब कर न दिया गया तो खेती बारी से मुंह मोड़ कर खेतों को बे बोये जोते छोड़ कर भाग गई। अब बादशाह ने प्रजा के मारने के लिये सेना भेजी। सैनिकों ने जंगलों में जाकर प्रजा को घेर लिया और इस तरह मारडाला जैसे शिकारी शिकार में जंगली जन्तुओं को मारते हैं।
४—महम्मद तुगलक ने दो बार दिल्ली के रहने वालों को आज्ञा दी कि देवगिरि चले जाओ जो दखिन में दिल्ली से ८०० मील है। इस ने देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रक्खा मानो यह नाम रखते ही वह दौलत का घर हो जायगा। देवगिरि से दिल्ली तक कोई सड़क न थी। विन्ध्याचल पर्वत और बनों के बीच में होकर जाना पड़ता था। रास्ते में कोई खाने पीने का सुभीता भी न था। बहुत से लोग राह में मर गये और जो बचे खुचे देवगिरि पहुंचे उनके लिये रहने को वहां घर न थे। निदान बादशाह ने आज्ञा दी कि तुम लोग फिर दिल्ली लौट जाओ।
५—महम्मद तुग़लक हिन्दुओं से बहुत जलता था; जंगी और मुल्की ओहदे अफगानों को देता था, जो न हिन्दुओं को