ब्याह कर सकते थे। उसने कभी किसी बड़े अमीर को किसी दूसरे शक्तिमान अमीर की बेटी से ब्याह करने की आज्ञा नहीं दी। कारण यह कि वह डरता था कि दोनों मिलकर बहुत शक्तिमान न हो जायं। इन बातों का बादशाह स्वयं फैसला करता था कि किसान कितने खेत जोते, कितने नौकर चाकर रक्खे, और कितनी भेड़ बकरियां और गाय बैल पाले। कोई मनुष्य जो बहुत सा धन बटोरता तो बादशाह उसका धन छीन लेता था क्योंकि उसको यह खटका था कि लोग धनी और शक्तिमान हो जायंगे तो कदाचित बिद्रोही भी हो जायं। हर वस्तु का मोल भाव बादशाह ठीक करता था। दूकानों के खुलने और बन्द होने के समय भी वह ही नियत करता था। अन्तिम अवस्था में उसके राज का प्रबंध बिलकुल ही बिगड़ गया था। वह शराब पीने लगा था और राजकार्य और सारे अधिकार मलिक काफ़ूर के हाथ दे बैठा था।
९—मलिक काफूर चाहता था कि आप बादशाह बन जायं। इस कारण दिल्ली से हिलता न था। बादशाह बूढ़ा था उसकी बुद्धि भी ठिकाने न थी। मलिक काफूर ने उसी के हाथों से उसके बेटों को कैद करा दिया। जब चित्तौड़ और गवालियर के राजपूतों और दखिन के मरहठों ने देखा कि अलाउद्दीन के ज़बर्दस्त हाथों से राज निकल गया तो खुल्लम खुल्ला बिद्रोही होकर स्वतंत्र हो गये। अन्त में यह हाल हुआ कि काफ़ूर ने बादशाह को विष दे दिया और उसके दोनों बेटों की आंखें निकलवा डालीं और सिंहासन पर भी हाथ मारा। परन्तु बादशाह के निज सिपाहियों ने, जो अफ़ग़ान थे, काफ़ूर को मार डाला और अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र मुबारक को गद्दी पर बिठा दिया।