बास्तव में तुर्क था और बाल्यावस्था से ही दास बना दिया गया था।
उस समय मुसलमानी देशों की यह रीति थी कि जो लोग युद्ध क्षेत्र में बंदी किये जाते थे वह दास बना लिये जाते थे और दूर देशों में जाकर बिकते थे; और मुसलमान कर लिये जाते थे। वह अपने देश और साथियों से दूर होने के कारण अपने स्वामी के वंश को अपना ही समझते थे और उनकी भलाई मानते अपना जन्म काटते थे। दास कम उमर होता और स्वामी के कोई सन्तान न होती तो वह कभी कभी गोद भी ले लिया जाता था। कुतुबुद्दीन इसी नाते से अपने स्वामी के कुटुम्ब में आया था और होते होते पहिले सेनापति हुआ फिर बादशाह बना। यह गुलामवंश का पहिला बादशाह था। इस वंश का यह नाम होने का मुख्य कारण यह है कि इस में से बहुधा कुतुबुद्दीन को भांति पहिले दास ही थे।
३—कुतुबुद्दीन एक बीर योद्धा और योग्य सेनापति था; अपने आधीन अफसरों के साथ भलाई करने और उन को धन और सम्पत्ति देने पर ऐसा तत्पर रहता था कि लोग उसको चशमये फेज़ (अर्थात दान का सोता) कहते थे। दिल्ली के निकट उसने वह देखने योग्य मीनार बनाना आरम्भ कर दिया जो अब तक कुतुब मीनार के नाम से प्रसिद्ध है।
४—इस वंश का तीसरा बादशाह अलतमश था जो अपने