पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/९५

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विलासः२]
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भाषाटीकासहितः।

देशमें स्थापन को गई निज बाहुरूपी वल्लरी भामिनीनें तत्काल खींचली (अपना पति अन्य स्त्रीसे स्नेह रखता है यह जान रोष प्रकट किया। इसमें 'खंडिता' नायिका है)

दरानमत्कंधरबंधषंन्निमीलितस्निग्धविलोचनाब्जम्।
अनल्पनिश्वासभरालसांगं स्मरामि संगं चिरमंगनायाः[]॥२४॥

किंचित नम्र कंधरबंधवाला[], कुछ मुँदे हुए सुंदर लोचनरूपी कमलवाला, अधिकश्वासभर से सालस अंगवाला, अंगना [भामिनी] का संग (संयोग) मैं सदैव स्मरण करता हूं (रतिप्रसंग वर्णन है)

रोषावेशान्निर्गतं यामयुग्मादेत्य द्वार कांचिदाख्यां गृणतम्॥
मामाज्ञायैवाययौ कातराक्षो मंदंमंदं मंदिरादिदिरेव[]॥२५॥

रोषावेशके कारण (गृह) से निकल जानेवाले (और) अर्धरात्रि में द्वार पै आय (अपने आपही से) कुछ वार्तालाप करनेवाले मुझको जान, मंदिर [घर] से मंद मंद इंदिरा [लक्ष्मी] के समान भयभीत लोचनी (भामिनी) आई (इसमें 'कलहांतरिता' नायिका है)

हृदये कृतशैवलानुषंगा मुहुरंगानि यतस्ततः क्षिपंती।
प्रियनामपरे मुखे सखीनामतिदिनामियमादधाति दृष्टिम्॥२६॥


  1. 'उपेन्द्रवज्रा'।
  2. कंधा
  3. यह 'शालिनी' छंद है।