कपोलपालीं तव तन्वि मन्ये लावण्यधन्ये दिशमुत्तराख्याम्।
आभाति यस्यां ललितालकायां मनोहरा वैश्रवणस्य लक्ष्मीः[१]॥१०॥
हे लावण्यधन्ये, तन्वि [कृशाङ्गि] मैं तेरी कपोलपाली को उत्तर दिशा मानता हूं (क्योंकि) उस, ललित अलकौंवाली कपोलपाली में श्रवण (कुंडलों) की मनोहर श्री शोभायमान होती है और उत्तर दिशा स्थित अलकापुरी नाम नगरी में वैश्रवण [कुबेर] की मनोहर संपत्ति शोभा पाती है ('ललितालकायां' और 'वैश्रवणस्य' के दो दो अर्थ होने से 'श्लेष' अलंकार हुआ। कपोलपाली को उत्तर दिशि मानने से 'उत्प्रेक्षा' अलंकार की भी संसृष्टि हुई)
नीवीं नियम्य शिथिलामुषसि प्रकाशमालोक्य वारिजदृशः शयनं जिहासोः।
नैवावरोहति कदापि च मानसान्मे नाभेः प्रभा सरसिजोदरसोदरायाः॥११॥
प्रातःकाल में प्रकाश अवलोकन कर शिथिल [ढीली] नीवी (दुकूल ग्रंथि) को नियमित करके शय्या को छोड़नेवाली (भामिनी) की, कमल के उदर के समान नाभि की सौंदर्यता मेरे मन से कदापि नहीं उतरती
आलीषु केलीरभसेन बाला मुहुर्ममालापमुपा-
- ↑ यह 'उजाति' छंद है।