पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/८०

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[प्रास्ताविक-
भामिनीविलासः।


अत्यंत दीन अपने (उत्पन्न करनेवाले) पिता (मृग) का प्राण हरण करती है (अप्रस्तुत कस्तूरिका वृत्तांत वरणन करके संपत्ति की निंदा की है; यह तो प्रसिद्ध ही है कि लक्ष्मी जिसके पास होती है उसके प्राण, चोर इत्यादिकों से हरे जाने का सदा भय रहता है। संपत्तिमान पुरुष का भी वृत्तांत इससे प्रतीत होता है क्योंकि जिस धनका वे गर्व करते हैं वही उनके प्राण लेने का कारण होता है; इससे श्रीमंत होकर दर्प न करना चाहिए यह सूचित किया। कस्तूरी के गुणों मे दोषारोपण करने से 'लेश' अलंकार हुआ)

दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति चेतश्चिरन्तनमधं चुलुकीकरोति।
भूतेषु किंच करुणां बहुलीकरोति संगः सतां किसु न मंगलमातनोति॥१२२॥

सत्संग कौन कौन मंगल नहीं करता कुमति को दूर करता है, अंतःकरण को विमल करता है, जन्मांतरोंके पापों को घटाता है, (और) प्राणियों में दया को बढाता है। (मंगल करना और अमंगल हरना यह सत्पुरुषों का स्वभावही है इससे 'स्वभावोक्ति' अलंकार हुआ)

अनवरतपरोपकारव्यग्रीभवदमलचेतसां महताम्।
आपातकाटवानि स्फुरंति वचनानि भेषजानीव १२३॥

विमल अंतःकरणवाले (और) परोपकार (करने की चिंता) में निरंतर व्यग्र रहनेवाले सत्पुरुषों के वचन औषध