पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/६६

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[प्रास्ताविक-
भामिनीविलासः।

नितराम्॥ ललितांबरमिव सज्जनमाखव इव दूषयंति खलाः॥९२॥

दूसरे की गुह्य बात को गुप्त रखने में निपुण, गुणगणसंपन्न, सर्व प्रिय, सुंदर वस्त्र सहश सज्जन पुरुष को, मूषकरूपी खल दूषित करते हैं ('पूर्णोपमा' है; वस्त्र और सज्जनको सादृश्य में जो विशेषण कहे वे व्यर्थिक हैं सज्जन दूसरे की गोपन करने योग्य बात को गुप्त रखते हैं, वस्त्र शरीर के गुह्य भाग को आच्छादन करता है, सज्जन गुणवान होते हैं, वस्त्र गुण (तंतु-तागा) युक्त होता है; सज्जन सर्व प्रिय होते है, वस्त्र भी सबको प्रिय है.)

कारुण्यकुसुमाकाशः शान्तिशैत्यहुताशनः॥
यशः सौरभ्यलशुनः खलः सज्जनदुःखदः॥१३॥

सत्पुरुषों को दुःख देनेवाले दुष्ट मनुष्य करुणारूपी कुसुम [पुष्प] को आकाश के समान हैं अर्थात् जैसे आकाश में पुष्प का होना असंभव है वैसे इनके हृदयरूपी आकाश में करुणारूपी कुसुम का होना भी संभव नहीं; शांतिरूपी शीतलता को अग्निके समान हैं अर्थात् जहां अग्नि है वहां शीतलता क्यों निकट आवेगी और यशरूपी सुगंध को लशुन [लहसुन] के समान हैं, लशुन में उग्रगंध होने के कारण उसके पास अपर सुगंध नहीं आती यह जगत्प्रसिद्ध बात है। (इसमें 'अभेदरूपक अलंकार है)