पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/३७

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विलासः१]
(१७)
भाषाटीकासहितः।

न मालाकारोऽसावकत करुणां बालबकुले।
अयंतु द्रागुवद्यत् कुसुमनिकराणां परिमलै।
र्दिगन्तानातेनेमधुप कुलझंकारभरितान्॥३३॥

वाटिका के सब वृक्षो पर समभाव से प्रीति रख जिस बालबकुल के ऊपर मालाकार [माली] ने करुणा न की अर्थात न सींचा उसी (बालबकुल) ने मधुप समूह जिनपै गुंजार कर रहा है ऐसे अपने पुष्पों की सुगंध से दिशाओं को शीघही परिपूर्ण किया (गुरु ने यदि किसी अल्प वयस्क शिष्यपर विशेष ध्यान न भी दिया तोभी यदि वह चतुर और बुद्धिमान है तो शीघ्रही विद्याओं में प्रवीण होकर अपने तथा गुरु के गुणों का प्रकाश सब ओर करता है)

मूलं स्थूलमतीव बन्धनदृढं शाखाः शतं मांसला।
वासो दुर्गमहीधरे तरुपते कुत्रास्ति भीतिस्तव॥
एकः किंतु मनागयं जनयति स्वान्ते ममाधिज्वरं।
ज्वालालीवलयीभवनकरुणो दावानलो घस्मरः३४॥

हे तरुपते। मूल तो तुम्हारी परम स्थूल है, आलबाल [थाला (दृढ बंधाहै, शाखाये पुष्ट हैं, निवास तुम्हारा दुर्ग पर्वत परहै, तस्मात् तुझे किस का भय है! परंतु एक यह ज्वाल जाल से चक्राकारहुवा दयारहित, सर्व भक्षक, अग्नि मेरे अंतः करणको कुछ संतप्त करता है (किसी धर्मात्मा