पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/३६

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[प्रास्ताविक-
भामिनीविलासः।

मालाकार [मालि] विवेक शून्य हो गया है, रम नीरस हो गये हैं, दशो दिशा प्रचंड पवनसे अगम्य होगई हैं सूर्यातप असह्य हो गई है, इस प्रकार मरुदेशोत्पन्न चंपक वृक्ष के संहार करने की जिस समय में सर्व सामग्री हुई उस समय में हे मेघ? उसे जल से सिंचन करके प्राणरक्षा करने के लिये तुझे ब्रह्माने कहां से उत्पन्न किया! (कार्यबिगड़ते बिगड़ते यदि कोई अनायास सहायता देकर उसे ठीक कर देवै तो उस पुरुषको इस अन्योक्ति से धन्यवाद दें सकैंगे)

न यत्र स्थेमानं दधुरतिभयभ्रांतनयना।
गलद्दानोद्रेकभ्रमदलिकदंबाः करटिनः॥
लुठन्मुक्ताभारे भवति परलोकं गतवतो।
हेररद्य द्वारेशिवशिवशिवानां कलकलः[१]॥३२॥

जिस द्वार पर, मदोदक पान की इच्छा से आए हुए चमर समूह को धारण करने वाले और भयसे चकित नेत्रों वाले करिवर एक क्षणभी न ठहरतेथे और जहां गजमुक्ता बिखरे रहते थे ऐसे उसी द्वार पै शिव, शिव, आज सिंह के परलोकवासी होने से शृगाली शब्द करती हैं! (वीरौं दाताओं तथा सत्पुरुषों के पश्चात् कभी कभी एसीही विपरीत दशा होती है)

दधानः प्रेमाणं तरुषु समभावेन विपुलं।


  1. 'शिखरिणी।