भूमिका र है वह ( ) इस प्रकारके कोष्टकमें रक्खा गया है । जहां न छंद आये हैं वहां उनके नामभी लिखे हैं; लक्षण विशे- योगी न होनेके कारण नहीं लिखा गया । भामिनीविलासां ' 'औपच्छंदसिक ' वृत्तको मैंने 'माल्यभारा. नामसे लिखा यह नाम ग्रंथांतरमें पाया भी जाता है और सरलभी है; इसीसे का प्रयोग किया है । विशेषस्थलोंमें अलंकारादिक भी लिख गए हैं। उनका लालन साहित्यज्ञ करैहीं गे । .. १४ प्रस्तुत पुस्तककी भूमिका लिखने में जो जो मुझे आवश्यक उमुझ पडा और जो जो जगन्नाथरायके विषयमें वार्ता मिली सो तो मैंने समावेशित की । ऐसा करनेमें अन्य विषयोंका भी संक्षिप्त वेवेचन होता गया है क्योंकि, अंगांगीभावसे उनका भी कुछ न कुछ "प्त लेखसे संबंध है । यह उपक्रम, पुस्तकके परिमाणसे विशेष तीर्घावयवयी हुआ; तस्मात् अव वाचकोंसे क्षमा माँग मैं यहीं इस- की समाप्ति करता हूं। • झासी महावीर प्रसाद द्विवेदी। १८ सप्टेंबर १८९१) भाद्रपद शुक्ल १५ भृगौ १९४८ द पुस्तक मिलबेका ठिकाना- खेमराज श्रीकृष्णदास. "श्रीवेंकटेश्वर" छापाखाना बम्बई.
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