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[शांत-
भामिनीविलासः।

तमालः। रघुपतिमवलोक्य तत्र दूरादृषिनिकरैरिति संशयः प्रपेदे[]॥३४॥

"मरकतमणिरूपी (अल्प) पर्वत शिखर है क्या? अथवा तरुणतर तमाल वृक्ष है क्या?" इस प्रकार रामचन्द्रको वहां दूरसे अवलोकन कर ऋषियोंको संशय हुआ।

तरणितनया किं स्थादेषा न तोयमयी हि सा
मरकतमणिज्योत्स्ना वा स्यान्न सा मधुरा
कुतः। इति रघुपतेः कायच्छायाविलोकनत-
त्परैरुदितकुतुकैः कैः कैरादौन संदिदिहे जैनैः[]३५

"यह ययुना है क्या? न, (यमुना तो नहीं) वह तो जलमयी है; (फिर) मरकतमणिकी दीप्ति तो नहीं? न (वह भी नहीं क्योंकि यह तो माधुर्य युक्त है और) वह अर्थात् मरकतमणि दीप्ति मधुर नहीं है;" इस प्रकार रामचन्द्रके स्वरूपकी छायाके अवलोकनमें तत्पर और कौतुक युक्त होते हुए कौन कौन मनुष्योंने आदिमें संदेह नहीं किया। (यह संदेह अलंकार है)

चपला जलदाच्युता लता वा तरुमुख्यादिति संशये निमनः।
गुरुनिःश्वसितैः कपिर्मनीषी निरणैषीदथ तां वियोगिनीति[]॥३६॥

"मेघ से विलगहुई चपला है? अथवा वृक्षविशेष से वियो-


  1. 'पुष्पिताग्रा' वृत्त।
  2. 'हरिणी' छंद।
  3. माल्यभारा छंद।