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[शांत-
भामिनीविलासः।

मार्गमें नंदसुवन श्रीकृष्ण भगवान कभी न आवैंगे? (धैर्य धर और कृष्णस्मरण कर यह भाव)

श्रियो मे मा संतु क्षणमपि च मायद्गजघटा-
मदभ्राम्यद्भृंगावलिमधुरझंकारसुभगाः। निम-
ग्नानां यासु द्रविण मदिरा घूर्णितहशां सपर्या-
सौकर्य्यं हरिचरणयोरस्तमयते ॥३०॥

उन्मत्त गजेंद्र घटाओंके (गंडस्थलस्खलित) दानोदक पै भ्रमण करनेवाले मधुकरसमूहके मधुरवसे शोभायमान संपत्तियां मुझे न प्राप्त होवैं; क्योंकि, उन (संपत्तियों) में निमग्न होने (और) द्रव्यरूपी मदिरासे भ्रमिष्टनेत्र हो जानेस, हरिचरणके पूजनका सुकर अस्त हो जाता है (ऐश्वर्यसंपन्नत्व, हरिभक्तिका बाधक है यहभाव)

किं निःशांक शेषे शेषे वयसः समागतो मृत्युः॥
अथवा सुखं शयोथा निकटे जागति जाह्नवी जननी॥३१॥

(हे जीव!) निःशंक क्यों शयन करता है? (क्या तू नहीं जानता कि) जरावस्था में मृत्युका समागम होता है, अथवा (जो सोना ही है तो) निकटही भागीरथी जननी वर्तमान है (उसके तीर पै) सुखसे शयन कर।

संतापयामि किमहं धावंधावं धरातले हृदयम्।