भ्रमण करनेवाले, विश्रामहीन, जडबुद्धि, मुझ श्रमितके समस्त संताप, कृष्ण स्वरूप सदृश यमुना तीरका यह तमालवृक्ष नाश करै।
आलिंगितो जलधिकन्यकया सलीलं लग्नः प्रियंगुलतयेव तरुस्तमालः।
देहावसानसमये हृदये मदीये देवश्वकास्तु भगवानरविंदनाभः॥८॥
जैसे तमालवृक्ष से प्रियंगुलता लग्न होजाती है वैसेही प्रेमपूर्वक जलधिकन्या [लक्ष्मी] से आलिंगन कियागया भगवान कमलनाक्ष नारायण प्राण प्रयाण के समय मेरे हृदय में प्रकाश करै।
नयनानंदसंदोहतुंदिलीकरणक्षमा। तिरयत्वा
शु संतापं कापि कादंबिनी मम॥९॥
नेत्रौं के आनंदसमूह को अधिकाधिक बढ़ानेमें समर्थ मेघमालारूपी अनिर्वचनीय कृष्णमूर्ति मेरे संताप को शीघही नाश करें।
वाचा निर्मलया सुधामधुरया यां नाथ शिक्षाम-
दास्तां स्वप्नेपि न संस्मराम्यहमहंभावावृतो नि-
स्त्रपः। इत्यागःशतशालिनं पुनरपि स्वीयेषु
मां बिभ्रतस्त्वत्तो नास्ति दयानिधिर्यदुपते
मत्तो न मत्तोऽपरः॥१०॥
हे नाथ! सुधा के समान मधुर और निर्मल (श्रुतिरूपी)