पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१७०

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[शांत-
भामिनीविलासः।


पानेवाली ज्वाला की पंक्तियों से विकलित, यह मेरा मन, परम शोभायमान (और) अखिल माधुर्यता के मंदिर श्रीकृष्ण भगवान के मुखरूपी चंद्रमा में, चिरकाल पर्य्यंत चकोर के धर्मका आचरण करै।

अये जलधिनंदिनीनयननीरजालंबन ज्वलज्ज्वलनजित्वरज्वरभरत्वराभंगुरम्।
प्रभातजलजोन्नमद्गरिमगर्वसर्वंकषैर्जगत्त्रितयरोचनैः शिशिरयाशु मां लोचनैः॥२॥

हे लक्ष्मीनयनकमलाश्रय! [भगवन्-नारायण] प्रात:काल कमलके महान गर्वको हरण करनेवाले (अर्थात् कमल से भी विशेष शोभायमान) और त्रैलोक्यको आनंद देनेवाले अपने नयनोंसे, प्रज्वलित अग्निको जीतनेवाले ज्वरके भारसे मुझ भंगशीलको शीघ्र शीतल करो।

स्मृताऽपि तरुणातरं करुणया हरती नृणामभंगुरतनुत्विषांवलपिता शतैर्विद्युताम्।
कलिंदगिरिनंदिनीतटसुरद्रुमालंबिनी मदीयमतिचुंबिनी भवतु काऽपि कादंबिनी॥३॥

मनुष्यों के स्मरणमात्र के करतेही करुण से प्रचंड ताप को हरण करनेवाली, अक्षय है अंग की कांति जिनकी ऐसी अनेक विद्युल्लताओं से वेष्टित, यमुनातट के श्रेष्ठ वृक्षोंका आलंबन करनेवाली, विचित्र मेघमाला, मेरी बुद्धि का वि-