पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१६

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भूमिका । उत्तम प्रकारसे व्याख्या करके अलंकारादिकके नूतन उद अत्यंत रसाल वाणीमें दिये हैं । जगन्नाथरायके कालतक सां, ग्रंयकारोंकी यह पर्याय थी कि वह लक्षण अपनी ओरसे दि. और उदाहरण किसी पुरातन ग्रंथका लेतेथे; परंतु पंडितर वैसा करना उचित नहीं समझा। एतद्विपयक ' रसगंगाधर ।। ८ प्रारंभमें यह श्लोक है:- निर्माय नूतनमुदाहरणानिरूपं काव्यं मयाऽत्र निहितं न परस्य किंचित् । कि सेव्यते सुमनसा मनसाऽपि गन्धः कस्तूरिकाजननशक्ति भृता मृगेण*॥ __यह कितनी दर्पोक्ति है ! 'रसगंगाधर । में जगन्नाथराय गंगालहरीके भी श्लोक कई स्थलोंमें उदाहरणार्थ आये हैं जिनवे देखनेसे एक प्रकारका व्यामोह उत्पन्न होता है कि यदि भागीता रथीने, जैसा सुनने में आता है, उन्हें स्तवनानंतर परमधामको पहुँ। चाया तो यह श्लोक ' रसगंगाधर में कैसे प्रविष्ट हुए। इस दिप यमें विवाद करना ठीक नहीं क्योंकि ज्यों ज्यों अधिक खोज करते हैं त्या त्या अधिक शंका उत्पन्न होती जाती है । अस्तु । ' कुवल- यानंद । कार अपय्या दीक्षित जगन्नाथरायके प्रतिपक्षीथे । उनको पंडितराजने इस ग्रंथमे ' कुवाच्य कहे हैं और अनेक स्थल पै 'कुवलयानंद का खंडन किया है। प्रसिद्ध 'सिद्धांतकौमदी के प्रणेता भट्टोजी दीक्षित पैभी पंडितेन्द्रका वडा कटाक्ष था । 'मनो- रमा ' नामक कौमुदीकारकी टीकाको 'मनोरमा कुचमर्दन । ग्रंथ लिखके पंहितराजने छिन्न भिन्न किया है। ..

  • इस काव्यमें मैन नवीन उदाहरणोंकी रचनाकी है; अन्यकृत किांचा

न्मात्रभी नहीं ग्रहण किया; कस्तृरिका उत्पन्न करनेकी शक्ति जिनमें होती। द वे मृग क्या कभी पुष्प सुगंधकीभी इच्छा करते हैं ?