पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१५९

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विलासः२]
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भाषाटीकासहितः।

सुलोचनी (नायिका) के दशनौका शुक्लभाव, अधरोंके समागमसे अरुणताच्छादित भी, शुभ्रहास्य की सहायतासे फिर उल्लासको प्राप्त हुआ (निज शुक्लधर्मको परित्याग संगति के धर्मको ग्रहण करनेसे 'तद्गुण' अलंकार हुआ)

सरसिरुहोदरसुरभावधरितबिंबाधरे मृगाक्षि तव।
वद वदने मणिरदने तांबूलं केन लक्षयेम वयम्॥१८१॥

हे मृगलोचनि! कमलांतर्गत सौरभके समान सुगंधवाले, बिंबाफलको तिरस्कार करनेवाले अधर और मणिवत् दशन धारण करनेवाले तेरे मुखमें तांबूलको हम किस प्रकार जान सकते हैं? (नायिकाके मुखमें तांबूलजनित अरुणता न देख नायकने प्रश्न किया, उत्तरमें नायिकाने कहा कि मैंने तांबूल खाया है, परंतु कोई तांबूल लक्षण वदनमें न पानेसे नायिक कहता हैं कि तांबूलसे अधरमें अरुणता आती है परंतु तेरे अधर तो सदैवही अरुण रहते हैं; तांबूल खानेसे मुख सुगंधित होता है परंतु तेरा वदन तो स्वभावहीसे सुगंधित हैं, तांबूलसे दंत लाल हो जाते हैं परंतु तेरे दंत मणिमय हैं इससे उनका अरुण होना संभवही नहीं; अतएव भला फिर हम कैसे जाने कि तूने सत्यही तांबूल खाया है? मुख और तांबूलके गुणकी सादृश्यता वर्णन करनेसे 'मीलित' अलंकार हुआ)

शयिता सविधेऽप्यनीश्वरा सफली कर्तुमहो