(१०) भूमिका । निर्णय किया गया है, जिससे यह विदित होता है कि, जर राय शाहजहां के समय में थे। वामन पंडितने गंगालाई एक म समश्लोकी भाषांतर किया है, इससे भी स्पष्ट है कि यातं था प्र पंडितराजका समकालीन था या कुछ पीछे हुआ । रामससे । वामनादिक, शाहजहां के समय में हुए हैं तस्मात् जगन्नाथरायति हु। अकवर की सभा में होना असंभव जान पडता है,। फिर ' आवलोव अकवरी में लवंगी अथवा पंडित जगन्नाथ का कुछ भी वृत्तांत ने पंडित है; यदि ये उस समय में होते तो इन्का भी कुछ न कुछ अव त मेव उस पुस्तक में वर्णन किया जाता, क्योंकि उसमें अल्प। अल्प वातोंका स्पष्टीकरण किया गया है । मुम्बापुरस्थ श्रीयु पंडित लक्ष्मणरामचन्द्र वैद्यने स्वप्रकाशित भामिनीविलासबै उपोद्धात में पंडितराज के ' आसफविलास ' नामकग्रंथसे कुछ पंक्तियां उद्धत की हैं जिनमें प्रस्तुत कवि स्वयं कहता है विता 'पंडितराज की पदवी उसे शाहजहां ने दी। इन प्रमाणों से यह। स्थिर हुआ कि जगन्नाथ पंडित ख्रिस्तीय सम्बत् १६५० के लगभग देहली में वर्तमान था । वृद्धावस्था में इसने बहुत काल पर्यंत मथुरा वास किया। १० जगन्नाथराय के ग्रंथों के अवलोकन से यह तत्काल भासित होता है कि वह परम विद्वान् था। ऐसा सुनते हैं कि राज्यसभा में उसने वहुतेरे पंडितों को शास्त्रार्थ में परास्त किया । काव्य में उसे कितना गर्व था यह भामिनीविलासके अंतिमश्लोकोंसे विदित होता है संस्कृत कवियों में यदि इसकी गणना कालिदास, भारवि, भवभूति आदिकी मालिका में करें तो मेरी अल्पवुद्धचनुसार अति- शयोक्ति न होगी इस कविने यवनों के आघातसे शेपरही साहित्य तथा काव्यविद्याको अपने अप्रतिमग्रंथासे विशेष विभूपित किया। इसको संस्कृत भाषाके वर्णनीय कवियोंकी श्रेणी में अंतिम सम-
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