वनितेति वदंत्येतां लोकाः सर्वे वदंतु ते। यूनां
परिणता सेयं तपस्येति मतं मम॥११७॥
सर्वजन इसे 'वनिता' कहते हैं सो वे कहैं (परंतु) मेरे मतसै तो यह युवा पुरषोंकी तपस्याका फल है।
स्मयमानाननां तत्र तां विलोक्य विलासिनीम्।
चकोराश्चंचरीकाश्च मुदं परतरां ययुः॥११८॥
उस स्मितमुखी विलासिनी (नायिका) को देख चकोरौं और चमरौंको अत्यंत आनंद हुआ (चकोर, मुखको चन्द्र और श्रमर कमल मान प्रमुदित हुए यह भाव। 'भ्रम' अलंकार है)
वदनकमलेन बाले स्मितसुषमालेशमादधासि यदा।
जगदिह तदैव जाने दशार्धवाणेन विजितमिति॥११९॥
हे बाले! जब तू वदनकमल में लेशमात्र मुसकानि की शोभा को धारण करती है तभी मैं यह जानता हूं कि इस जगत को पंचशायक [मन्मथ] ने विजय किया।
कलिंदजानीरभरेऽर्धमग्ना बकाः प्रकामं कृतभूरिशब्दाः।
ध्वांतेन वैराद्विनिगीर्यमाणाः क्रोशंति मन्ये शशिनः किशोराः॥१२०॥
यमुनाजलमें निमग्न है अई शरीर जिनका ऐसे, बहुत शब्द करनेवाले ये बक (नहीं किंतु) वैरभावके कारण अंध-