पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१२६

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[शृंगार-
भामिनीविलासः।

भुजंगा। मज्जति यत्र संतः सेयं तरुणी तरंगिणी विषमा॥९५॥

रूपरूपी जलवाली, चंचलनयनरूपी (मीनवाली) नाशि रूपी धमरवाली, केशसमूहरूपी भुजंगमवाली यह तरुणी दुस्तर सरिता है, जिसमें (शृंगार शास्त्र प्रवीण) सज्जन मज्जन करते हैं (यह भी 'रूपक' है)

शोणाधरांशुसंभिन्नास्तन्वि ते वदनांबुजे।
केसराइव काशते कांतदंतालिकांतयः॥९६॥

हे कृषांगि! अरूणअधर की किरणों से मिश्रित तेरे वदनकमल में मनोहर दंतपंक्ति की कांति केसर [किंजल्क] के समान शोभायमान है।

दयिते रदनविषामिषा दयि तेऽभीविलसंति
केसराः। अपि चालकवेषधारिणो मकरंदस्पृहयालयोऽलयः॥९७॥

अयि कामिनि! तेरी दशनकांति के मिष से ये किंजल्क और मकरंद के लोनी (ये )अलक वेषधारी चमर,शोभायमान हो रहे हैं ('अपन्हुति' अलंकार है; इससे यह ध्वनि निकलती है कि तू कामिनी नहीं है किंतु कमलिनी है)

तया तिलोत्तमीयंत्या मृगशावकचक्षुषा। म-
माऽयं मानुषो लोको नाकलोक इवाभवत्॥९८॥

उस तिलोत्तमा नाम अप्सरा के समान आचरण करने