करने वाली मृगलोचनियों के मुखमें दीर्घ श्वास, कपोलौं में पियराई (और) मन में शून्यकार वृत्ति उत्पन्न हुई।
प्रसंगे गोपानां गुरुषु महिमानं यदुपतेरुपा-
कर्ण्य स्वियत्पुलकितकपोला कुलवधूः। विष-
ज्वालाजालं झटिति वमतः पन्नगपतेः फणायां
साश्चर्यं कथयतितरां तांडवविधिम्॥८०॥
प्रसंग (विशेष) में, वृद्धगोपालौं के बीच, यदुपतिकी महिमाको श्रवण करके, प्रस्वेद युक्तपुलकितकपोलवाली कुलबधू, विषज्वालाके समूहको बडे वेग से वमन करनेवाले सर्पराज [काली] के फणौं नृत्यविधि आश्चर्य से कहती है (प्रियतम की महिमा सुनने से नायिकाको परम हर्ष हुआ परंतु गुरुजनौंसे उसका प्रकट करना उचित न जान कालिय मर्दनकी कथा कह कर अपने अंतर्गत आवको दुराया)
कैशोरे वयसि क्रमेण तनुतामायाति तन्व्यास्त-
नावागामिन्यखिलेश्वरे रतिपतौ तत्कालमस्या-
ज्ञया। आस्ये पूर्णशशांकता नयनयोस्तादा-
त्म्यमंभोरुहां किंचासीदमृतस्य भेदविगमः
साचिस्मिते तात्विकः॥८॥
बाल्यावस्था में कृशता को प्राप्त होने वाले अखिलेश्वर रतिपति के तन्वी [कृषांगी] के शरीरमें क्रम क्रम से प्रवेश होने से शीघ्रही उस (रतिपति) की आज्ञासे (नायिका