हे लक्ष्मण! यदि वह कुरंगनयनी (सीता) मेरे दृष्टिपथ को न प्राप्त होगी तो मेरे इस जडजीवन तथा निष्फल जगत से क्या फल है! (लक्ष्मण के प्रति यह रामचंद्र का वचन है)
भवनं करुणावती विशंती गमनाज्ञालवलाभ-
लालसेषु। तरुणेषु विलोचनाब्जमालामथ
बाला पथि पातयांबभूव[१]॥६२॥
गृहमें प्रवेश करनेवाली करुणावती बालाने मार्गमें, गमनार्थ आज्ञारूपी लाभके लोनी युवा पुरुषोंके ऊपर नेत्ररूपी कमलमालाको डाला अर्थात् उनकी ओर अवलोकन किया (बाहर से घर आनेवाली नायिकाने अपने अनुगामी पुरुषों पै दया करके अवलोकन मात्र से उन्है लौटनेकी आज्ञा दी यह भाव-इसमें 'कुलटा' नायिका है)
पापं हंत मया हतेन विहितं सीतापि यद्यापि-
ता सा मामिदुमुखी विना बत वने किं जीवितं
धास्यति। आलोकेय कथं मुखं सुकृतिनां
किं ते वदिष्यति मां राज्यं यातु रसातलं पु-
नरिदं न प्राणितुं कामये॥६३॥
मुझ हतभाग्य ने महत्पाप किया जो सीताको (वन में) भेजा; हाय! वह इन्दुमुखी विना मेरे कानन में किस प्रकार जीवन धारण करैंगी? मैं महाजनौंका मुख कैसे देखूंगा
- ↑ 'माल्यभारा'।