पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१०६

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[शृंगार-
भामिनीविलासः।

ललाट में शोभायमान है (कस्तूरीतिलक के यथार्थ गुण को गोपन कर उसको भ्रमर मानने से 'अपन्हुति' अलंकार हुआ)

अधिरजनि प्रियसविधे कथमपि संवेशिता बलाद्गुरुभिः।
किं भवितेति सशंकं पंकजनयना परामृशति॥५३॥

रात्रि समय बल से प्रियतमके समीप गुरुजनोंसे जैसे तैसे प्रवेशकी गई कमलनयनी 'क्या होगा' इस प्रकार सशंक होकर (मनमें) विचारती है ('नवोढ़ा' नायिका है)

चिंतामीलितमानसो मनसिजः सख्यो विहीनप्रभाः प्राणेशः प्रणयाकुलः पुनरसावास्तां समस्ता कथा॥
एतत्त्वां विनिवेदयामि मम चेदुक्तिं हितां मन्यसे मुग्धे मा कुरु मानमाननमिदंराकापतिर्जेष्यति॥५४॥

हे मुग्धे! (मान करने से) मनसिज म्लान हो जावैगा, सखियां तेजहीन हो जावैंगी, और यह (तेरा) प्राणपति प्रेमाकुल हो जावेंगा, (इस कारण से) इन बातों को रहने दे; तेरे प्रति निवेदन किएगए मेरे इस हितोपदेश को मान, मान न कर (क्योंकि ऐसी शिक्षा को न सुनने से तेरे) मुख को चंद्रमा जीत लेवेगा। (नायक से न मिलने से तुझे विरह वेदना सहनी पड़ेगी और उस समय में चंद्रमा तुझे दुखदाई होगा अथवा तेरा आनन अनी निष्कलंक है परंतु उदासी-