काम और नाम दोनों साथ साथ चलते हैं ज़रिये नाम कायम रखने के तरीकों में किसी ठठोल ने एक यह तरीका भी लिखा है। घटं भिन्यात्पर्ट छिन्द्याद्गदभारोहणं चरेत् । येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध पुरुषो भवेत् ॥ घड़े फोड़ डाले, कपड़े फाड़ डालै, गदहे पर सवार होकर चलै किसी न किसी तरह मनुष्य नाम हासिल करै। कितने हलाकू, चगेज़, नादिर से जगत शत्रु ऐसे भी हो गये हैं जिनके काम की चर्चा सुन गर्भवती के गर्भ गिर पड़ते हैं। कितने नाम के लिए मर मिटते हैं- जग मे मुँह उजला रहे, बात न जाय, कोई नाम न रक्खे, एक की जगह चाहे दस लुटै पर ऐसा काम न बन पड़े कि सब लोग हँसै । नाम रखते हैं, नाम करते हैं, नाम धरते हैं, नाम धराते हैं, नाम पड़ता है, नाम चलता है, इत्यादि अनेक मुहाबिरे नाम के हमारी रोज़मरे की बात चीत मे कहे सुने जाते हैं पर इन सबों मे नाम का काम ही की तरफ इशारा रहता है। ईश्वर न करै बुरे कामों के लिये किसी का नाम निकल पड़े। दूसरा भी कोई बुरा काम करै तौ भी "नरक पड़े को चन्दू चाचा" समाज मे उसी की तरफ सबो की ओर से अगुश्त- नुमाई की जायगी, जा बुरे कामो के लिये, प्रसिद्ध हो चुका है। पुलिस भी उसी को तके रहेगी मैजिस्ट्रेट साहब जुदा उसकी खोज मे रहेगे । योंही भले काम के लिये नाम निकल गया तो चाहो दूसरा भी कोई वैसा ही काम करै किन्तु देशी परदेशियों में नाम उसी का लिया जायगा "कटै सिपाही, नाम सरदार का", "नामी शाह कमा खाय, नामी चोर मारा जाय' जो वात बिना उस तरह के काम के होती हैं वह बराय नाम को कही जाती हैं जैसा ईसाई मत के मानने वालों मे ईसा पर विश्वास बराय नाम को है। इन दिनों के सभ्यों में सच्ची सभ्यता बराय नाम को है। मेनचेस्टर के बने कपड़ों के आगे देशी कपड़ो की कदर बराय नाम को है । इस समय के ब्राह्मणों मे द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी आदि उपाधि बराय नाम है-
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