पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/९२

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> . २३-काम और नाम दोनों साथ साथ चलते हैं नाम के कायम रखने को आदमी न जानिये क्या क्या काम करता है। लोग कुआँ खुदाते हैं। बावली बनवाते हैं । बाग़ लगाते हैं। मोहफ़िल सजाते हैं। क्षेत्र और सदावत चलाते हैं। नाम ही के लिये लोग लाखों लुटाते हैं। स्कूल पाठशाला तथा अस्पताल कायम करते हैं। इस तरह पर काम और नाम दोनो का बराबर साथ निभता चला जाता है। सच कहो तो इस असार संसार मे जन्म पाय ऐसा ही काम कर चलै जिसमे नाम बना रहे जिनका नाम बना रहता है वे भानों सदा जीते ही रहते हैं। जिस काम से नाम न हुआ वह काम ही व्यर्थ है । काम भी दो तरह के होते हैं, नेक और बद । नेक काम से आदमी नेक नाम होता है, प्रातः स्मरणीय होता, पुण्य-श्लोक कहलाता है। बद नाम से बदनाम होता है उसका नाम लेते लोग घिनाते हैं । गालियां देते हैं। नाक और भौ सिकोड़ने लगते हैं- कथापि खलु पापानामलमश्रेयसे यतः, पुण्य श्लोक यथा पुण्यश्लोको नलोराजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः । पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥ कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्यच । ऋतुपर्णस्य राजः कीर्तनं पाप नाशनम् ॥ इत्यादि नेकनामी के अनेक उदाहरण है। केवल अपने अपने काम ही से लोग नेकनाम हो गये। रणजीत सिह, शिवा जी प्रभृति शूरवीर, विद्यासागर सरीखे देश हितैपी, लार्ड रिपन से शासनकर्ता, शेक्सपियर, मिलटन, कालिदास श्रादि कवि सब अपने अपने काम ही से हम लोगों के बीच मानों जी रहे हैं और श्रा-चन्द्रतारक जीते रहेंगे। काम के , ,