आदि मव्य अवसान ८३ जैसा उन्होने पता लगाया वैसा अब तक न किसी प्राचीन जाति को सझा, न ऐसी आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर कोई आधुनिक सभ्य जाति पहुंची। दर्शन शास्त्रों की जुदी जुदी प्रक्रिया; सस्कृत सी लोकोत्तर परिष्कृत भाषा; सगीत, कविता आदि अनेक कौशल का आविष्कार और उनकी परमोन्नति की गई। (सिम्पिल लीविंग ऐण्ड हाई थॉट्स) साधारण जीवन और उत्कृष्ट विचार इन्ही प्रार्थों में पाया गया। अब उस सभ्यता का अवसान है। पहले यावनिक-सम्यता ने इसका दलन किया सब तरह पर इसे चूर चूर कर डाला अब विदेशी सभ्यता इसे पराभव देते हुये देश में सब ओर अपना प्रकाश कर रही है । वैदिक सभ्यता का अवसान होने से उनके मूल आधार ब्राह्मण ब्राह्मत्व से च्युत हो गये, चातुर वर्ण तथा चार आश्रम की प्रथा छिन्न-भिन्न हो गई, सस्कृत का पठन-पाठन लुप्त प्राय हो कहीं कही थोडे से ब्राह्मणों ही में रह गया। आधुनिक नूतन सभ्यता और शिक्षा जो इस समय अपनी प्रौढ अवस्था में है उसका पहिला उद्देश्य यही है कि जहाँ नक जल्द हो सकै ऊपर कहे मूल आधारो का कही नाम निशान भी न रहने पावे। जिस घराने मे दस पुश्त से अविच्छिन्न पठन पाठन संस्कृत का रहा आया और एक से एक दिग्गज पण्डित और ग्रन्थकार होते आये वहाँ अब अँगरेजी जा घुसी। उस कुल के विद्यमान वशधर अब ब्राह्मण बनने मे शरमाते हैं। अपने को पण्डित कहते वा लिखते रुकते हैं। मिस्टर वा बाबू कहने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है कहीं कही तो यहाँ तक सस्कृत का लोप देखा जाता है कि उनके घर की पुरानी पुस्तके दीमक चाट गये। लडकों में एक भी इस लायक न हुआ कि साल में एक बार पुस्तको के बस्तों को खोलता और उन्हे उलट पुलट सौंत के रखता। न्तन सभ्यता यहाँ तक पाँव फैलाये हुये है कि वे जो पुराने क्रम पर है बेअकिल समझे जाते हैं, सभ्य समाज मे उनकी हँसी होती है। हम ऊपर कह पाये है अवसान भी किसी किसी का सोहावना
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/८३
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