- सुनीतितत्वशिक्षा ७६ का ध्यान हम लाया चाहते हैं उसमे ऐसे ही कोई बिरले बड़े बुद्धिमान धनी-मानी या प्रभुता वाले होंगे जिनको अपने "मारल्स" सुनीति तत्व के सुधारने और बढाने की कभी को कुछ चिन्ता हुई होगी। सच तो यो है कि वास्तविक सुख बिना इस पर ख्याल किये हो ही नहीं सकता। हमारे मारल्स बिगड़े रहें और उस दशा मे वास्तविक सुख की आशा वैसा ही असंभव है जैसा बालू से तेल का निकालाना असभव है । वैभव प्रभुता या ससार की वे बाते जो इज्जत और मरतबा बढाने वाली मान ली गई हैं जिन के लिये हड्डी के एक टुकड़े के वास्ते कुत्ते की भाँत हम ललचा रहे हैं वे सब उसको अति तुच्छ हैं जो अपने "मारल्स" का बड़ा पक्का है। जो आनन्द इसमे मिलता है वह उस सुख के समान नही है जैसा विषय-वासना के सुख का क्रम देखा जाता है क्योकि विषय-वासना के सुख उसके लिये हौसिला रखने वाले की पहुँच के भीतर हैं पर सुनीति तत्व सम्बन्धी अलौकिक सुख हमारी पहुँच के बाहर हैं। लाखो इस सुख के शिखर तक चढने का हौसिला करते हैं पर कोई एक ही दो इसकी चोटी तक पहुंचता है। सुनीति तत्व के सिद्धान्तों पर लक्ष्य किये और प्रतिक्षण अपने दैनिक जीवन मे उसका पालन करते हुये बुद्धि के आकुस से प्रेरित हो मनुष्य इस आनन्द का अनुभव कर सकता है पर इन लोहे के चनों का चबाना सर्व साधारण के लिये सहज नही है किन्तु इसके अधिकारी वेही हो सकते हैं जिनको उनकी झोपड़ी ही महल है। जिनकी आभ्यन्तरिक शान्ति की दशा के सामने बडी बड़ी बादशाहत भी मूल्य मे कम हैं । जो अपने सिद्धान्तों के बड़े पक्के हैं उनसे एक बार किसी ने पूछा- साहब आपको दुनिया मे औकात वसरी का क्या सहारा है ? जबाब दिया अकिल, आप लोग विषय-वासना-लपट हो दुनियाबी सुख की गुलामी के पीछे दौड रहे हो मै उसी को अपना गुलाम किये हुये हूँ। तब यह पूछना ही व्यर्थ है कि आपको अपनी प्राण यात्रा "ौकात बसरी' का क्या सहारा है। सच है,-
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