पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/५२

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५२ भट्ट निबन्धावली कलगी होगे। वही आप ससार के समस्त गुणियो मे अग्रगण्य हो अपने सुयश की महक से महर-महर करते सुचाल और सवृत्त की कसौटी में कसे हुए हो पर उस खूसट स्वार्थ लंपट से रुपये में अपना उचित हक्क समझ खलल अन्देज़ हुये बस आपसा नालायक और बुरा दूसरा कोई उसकी निगाह मे न जचगा। उसके सामने आप का नाम किसी की जबान पर ग्रा जाय ता गालियों के सहस्रनाम का पाठ प्रारंभ कर देगा। न सिर्फ आप को बरन श्राप जिनके बीच में चलते फिरते है जो तुम्हे सवृत्त समझ तुम्हारी कदर करते हैं उनके लिये भी उसी सहस्रनाम का पाठ तैयार है। किसी की समझ म हुकमत बड़ा सुख है अपनी हुकूमत के ज़ोर में गरीब दुखियानों को पीस उनका लह सुखाय-सुखाय न्याय हो चाहो अन्याय अपना सुख और अपने फाइदे में जरा भी कसर न पड़े इत्यादि इस कबखन के लिये सब सुख है। किसी-किसी का मत है कि शरीर का नीरोग रहना ही सुख सन्दोह का उद्गार है इसी मूल पर यह कहावत चल पड़ी है "एक तन्दुरुस्ती हजार न्यामत। ये सब सुख ऐसे हैं जो देर तक रह सकते हैं और जिनके लिये हम हज़ार-हज़ार तदबीरे और फिक्र किया करते है फिर भी ये सक तभी होते हैं जब पुर्विले की कोई अन्छी कमाई हो। और अपने किये नहीं होता जब तक उम बंटे मालिक को मंजूर न हो। अब कुछ थोड़े मे सुद्र सुखों को यहां पर गिनाते हैं और उन स्खो के भोक्ता किस प्रकार के होते हैं उसे भी उसी के साथ बनाते चलेंगे। जैसा शहर के बदमाश और शोहदों का नुख नग्म तथा राशी हाकिम्गे के होने से है। वनियों को महाभिन परम मुम्ब है, हतारो का अन्न खरीदे हुये हैं नित्य पनसेरी लुढकात-लुढ़काने यह दिन पाया कि अन्न दृढे नहीं मिलता सेठ जी साहब की गज भर की छाती है मुनाफे का गॅजियो रुपया डेकार वैठे। दलाली को मुम्ब प्रोग्य का प्रन्या गांठ का पूग मिल जाने में है। कलहा कसा को मुग्ध