पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/४७

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तेजस्विता या प्रभुशक्ति ४७ . उमर की उमंग मात्र है। किन्तु स्थिर अध्यवसाय के साथ तबियत मे ज़ोर का होना इसी को कहेगे कि हमारे मित्रवर इस अपने उत्तम (नोबिल) उद्देश्य मे कृतकार्य हुये ही तो । मनुष्य चाहे बडा बुद्धिमान् न हो पर अध्यवसाय और रगड करने मे थकैगा नहीं ता वह अवश्य कृतकार्य होगा, और ऐसे काम जिसे काम कहेंगे जो बहुत से लोगों के नफा नुकसान का है बिना रगड़ के कभी सिद्ध भी नही हुये । तबियत मे जोर रख रगड़ करने वाला जितना ही कठिनाई और विघ्नों के साथ लड़ता रहेगा उतना ही उसका नाम होगा और यत्नशीलों मे अगुवा माना जायगा। कहा भी है- "न साहसमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति । साहसं पुनारारुह्य यदि जीवति पश्यति ॥" वह साहसी अपने निरन्तर अभ्यास, प्रयत्न और परिश्रम के द्वारा असभावित को सभावित कर दिखा देगा। जिनमे ज़ार नही बुझे दिल के हैं सदा सशयालू हा शक मे पड़े रहते हैं, उनको तो छोटी छोटी बात भी जो संभावित है सदा असभावित रहती है । यूरोप के नये नये दार्शनिक (फ्रीविल) मनुष्य अपने काम मे स्वच्छन्द है इस बात पर बड़ा जोर देते हैं इसमे सन्देह नही आदमी जल मे पडे हुये तिनके या घास फूस के सदृश नही है कि जल का प्रवाह उसे जिधर चाहे उघर ले जाय किन्तु यदि यह दृढता के साथ अपने मे अच्छे पैराकू तैरने वाले की ताकत रखता है और विघ्नो के झकोर से नहीं हटता तो अन्त को कामयाब होता ही है। जब तक हम जीते हैं हमाग चित्त प्रति क्षण हम से यही कह रहा है कि तुम अपने काम के आप जिम्मेदार हो। ससार के अनेक प्रलोभन और अभ्यास तथा आदते उसे अपनी ओर नहीं झुका सकते, प्रलोमित हो उधर झुक जाना केवल हमारी कंचाहट है । इससे जो अपने सिद्धान्तों के दृढ हैं वही मनुष्य हैं उनके पौरुषेय गुण के आगे कुछ असाव्य नहीं है। सितम्बर १६००