४४ भट्ट निबन्धावली लिया अब पचास साठ वर्ष से हिन्दू मुसलमान दोनो अपने नये जेता का अनुकरण कर रहे हैं, किन्तु उनमें जो कुछ त्रुटि है केवल उसी का उनमें भलाई क्या है उसका नहीं। उनका सा अव्यवसाय धुन बाँध के किसी काम को करना बिन्न पर विघ्न होता रहे पर जिसे प्रारम्भ किया उसे करी के तब छोड़ना; स्वजाति, पक्षपात, विद्याभ्यास: ऐक्य; साहस, धैर्य; वीरता: विचार की दृढता आदि उनके अनेक गुणो की ओर कभी व्यान नहीं देते उनकी सी भोग लिप्सा पान दोष इत्यादि को अलबत्ता अपना करते जाते हैं। यावत् कर्त्तव्यो मे वर्तमान गिरी दशा से अपना उद्धार महा कर्तव्य परायणता है किन्तु इस पर किसी का व्यान नहीं जाता प्रत्युत उसी को ऋतंव्य मान रहे हैं जिसमे हमारा अधिक बिगाड़ है और गतानुगतिक न्याय के अनुसार भेड़िया धसान के समान आँख मूंद उधर ही को बरा- घर चले जाते हैं । मंधिया और हुल्कर के पूर्व पुरुष इसी कत्तव्य पग- यणता के बदौलत इस उत्तम पद पर कर दिये गये। ये दोनों पेशवा के घर के सेवक थे। इतिहासो में कितने इसके उत्तम उदाहरण पाये जा सकते हैं इस समय भी यद्यपि देश बड़ी गिरी दशा में आ गया है पर ईदने से बहुत से अच्छे उदाहरण मिल जायेंगे। जिनमे कर्तव्य परा- यणता होगी उनमें समय का सदनुष्ठान पंक्चुअलिटी) भी अवश्य होगी, दोनों उत्तम गुणो का बडा घनिष्ट सम्बन्ध है, दूसरा कभी रही नहीं सकता। देश के कल्याण के लिए इन दोनो का उस देश के निवासियों में पाना स्वाभाविक गुण होना चाहिये । ईश्वर प्रसन्न होकर हम लोगों में पनंव्य परायणता स्वाभाविक गुण पैदा कर दे तो देश का उत्थान सहज में हो जाय । सर्वसाधारण की दशा के परिवर्तन की यह बदली सीढ़ी अवश्य ही जायगी और सीढ़ी सीटी बदते जाये ना न्द्राचिन् एक दिन शिखर पर भी चट बैठे तो अचरज क्या। विना एक
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